*कलम तुम्हारी क्या कहती है*
खिसकते कागजों पर सरकती स्याही से,
कलम तुम्हारी क्या कहती है
किस्से पुराने या
इतिहास नया कोई लिखती है
लिखती है सुनाने को
इक आम सी कलम,
जो गूंगी रुह को ज़बान दे
वो कलम खास होती है।
लिखो तो ऐसे लिखो
हर शब्द को इक आवाज़ मिले,
हर रात के बाद सवेरा हो
हर अंत को इक आगाज़ मिले।
लिखी जाएँ जो मिसालें
ज़िंदगी की कलम से
वो कभी मिटती नहीं,
यहाँ लाशें कई अभी जिंदा हैं
क्योंकि स्याही कभी मरती नही।
बिकती हैं बाजारों में कहानियाँ
कई बनावटी,
जो बने किसी ज़िंदगी का आईना
तुम्हे वो इबारत लिखनी है।
खिसकते कागज़ों पर सरकती स्याही से,
कलम तुम्हारी क्या कहती है,,,।।
लेखिका : अनामिका सिमर
बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश
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